पालीघाट में पेड़ गिरने से थमा यातायात, ग्रामीणों की एकजुटता ने दिखाई इंसानियत की असली तस्वीर



पालीघाट में पेड़ गिरने से थमा यातायात, ग्रामीणों की एकजुटता ने दिखाई इंसानियत की असली तस्वीर

पालीघाट, रायगढ़।
वक्त था शाम के लगभग साढ़े छह बजे का। मौसम अचानक बदल गया, तेज़ हवाएं चलीं और कुछ ही देर में हल्की बारिश शुरू हो गई। इसी बीच एक बड़ा हादसा टल गया लेकिन एक असुविधा ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर दिया। रायगढ़ को ओड़िशा से जोड़ने वाला पालीघाट मार्ग—जो मुख्य आवागमन का ज़रिया है—पर एक विशाल पेड़ गिर गया, जिससे सड़क पूरी तरह से जाम हो गई।



यह घटना आम नहीं थी, क्योंकि इन दिनों क्षेत्र में शादी-विवाह का मौसम चल रहा है और लोगों की आवाजाही ज़ोरों पर है। कई बारातें, परिवार और रोजमर्रा के मुसाफिर इस बाधा के चलते फंस गए। किसी की गाड़ी रास्ते में रुकी थी, तो कोई पैदल चलने को मजबूर था। लेकिन इस पूरी अव्यवस्था के बीच जो बात सबसे खास रही, वह थी पालीघाट के लोगों की जागरूकता और उनकी ‘मिलकर मदद’ करने की भावना।

जब तक प्रशासनिक मदद पहुंचे, तब तक गांव के युवाओं ने खुद जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। समाजसेवा में सदैव अग्रणी रहने वाले बबलू नायक और नीलकंठ चौधरी ने सबसे पहले स्थिति को देखा और बिना देर किए साथियों को बुलाया। कुछ ही समय में नरेश राठिया, अलेख राठिया (पडिगांव), चंद्रिका राठिया और अन्य ग्रामीण मौके पर पहुंच गए।

इन लोगों ने न किसी से आदेश लिया, न इंतज़ार किया—बस कुल्हाड़ी, फावड़ा, रस्सी और साहस लेकर जुट गए सेवा में।
यह वह पल था जब सहयोग सिर्फ शब्द नहीं था—वह कर्म बनकर सामने आया।

और इस अभियान में सिर्फ बड़े लोग ही नहीं थे। छोटे-छोटे बच्चे भी अपने-अपने स्तर पर मदद के लिए आए। कोई अपने घर से टॉर्च ले आया, किसी ने ठंडे पानी की बोतलें थमा दीं। एक बच्चा तो पेड़ की छोटी टहनियां समेटने लगा ताकि बड़े आसानी से काम कर सकें। यह दृश्य ऐसा था मानो कोई गांव नहीं, बल्कि एक जीवंत समाज अपने कर्तव्य पर लगा हो।

करीब तीन घंटे की कड़ी मेहनत के बाद, जब पेड़ को पूरी तरह हटाया गया और सड़क फिर से चालू हुई, तब न कोई शोर हुआ, न कोई ढोल। सिर्फ चेहरे पर संतोष था और एक दूसरे के लिए गर्व की भावना।

पालीघाट की यह घटना सिर्फ एक पेड़ हटाने की नहीं थी—यह एक समाज को जोड़ने की कहानी थी।
यह दर्शाता है कि जब हम ‘मैं’ से ऊपर उठकर ‘हम’ में बदलते हैं, तब कोई भी समस्या बड़ी नहीं रह जाती।

आज जब अक्सर समाज में निराशा, उपेक्षा और दूरी देखने को मिलती है, ऐसे में पालीघाट जैसे उदाहरण उम्मीद की एक किरण हैं। ये युवा नायक केवल रास्ता नहीं खोलते, बल्कि समाज सेवा का रास्ता दिखाते हैं।

स्थानीय ग्रामीणों ने इन समाजसेवकों की सराहना करते हुए प्रशासन से यह अपील की है कि ऐसे ज़मीनी कार्यकर्ताओं को पहचान मिले, ताकि प्रेरणा की यह चेन आगे भी चलती रहे।

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