कर्मागढ़ में डैम नहीं, धोखा बन रहा है!
पानी के नाम पर शुरू हुआ निर्माण, सवालों के दलदल में धँसा



रायगढ़। एक ओर सरकार जल संरक्षण और वन्य जीवन को बचाने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर कर्मागढ़ में वन विभाग के तहत बन रहा स्टॉप डैम खुद ही सवालों के बाढ़ में बहता नजर आ रहा है।

बिना कप्तान की नाव, कहां पहुंचेगा सफर?
रानी दरहा मंदिर के समीप बन रहे डैम पर न कोई इंजीनियर, न ठेकेदार का अता-पता। मिस्त्री से पूछो तो जवाब आता है – “कौन ठेकेदार, मुझे नहीं पता!” यानी, निर्माण का जिम्मा जिन हाथों में है, उन्हें खुद नहीं पता कि आदेश किसका है।

जहाँ इंजीनियरिंग गायब हो, वहां मज़बूती कैसे टिके?
नाले के बीच बिना नींव, बिना सरिया, बिना तकनीकी प्लान के जो डैम बन रहा है, वो बारिश की पहली मार भी सह पाएगा या नहीं – इस पर स्थानीयों को गंभीर संदेह है। एक विशेषज्ञ ने दो टूक कहा, “यह डैम नहीं, भविष्य की बर्बादी का नक्शा है।”

जनता सवाल कर रही, विभाग खामोश क्यों?
जब ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान हमने अधिकारियों से संपर्क किया, तो फोन तक नहीं उठाया गया। सवाल ये है — जब शुरुआत में ही जवाबदेही गायब है, तो कार्य पूरा होने तक क्या कुछ “गायब” हो जाएगा?

इतिहास खुद को दोहरा रहा है?
वर्षों पहले इसी नाले में बना था एक डैम — जो आज ध्वस्त पड़ा है, उसमें पानी रुकता नहीं, लेकिन भ्रष्टाचार की कहानियाँ आज भी तैर रही हैं। अब नया डैम उसी पुराने ढर्रे पर शुरू हुआ है।

26 अप्रैल – कार्रवाई का दिन या औपचारिकता?
विश्वसनीय सूत्रों से खबर है कि 26 अप्रैल को विभागीय जांच होगी। पर ग्रामीणों को डर है कि यह महज दिखावा बनकर न रह जाए। इसलिए वे अब एक स्वर में कह रहे — “इस बार चुप नहीं रहेंगे!”

जनता की माँग – जवाब चाहिए, नतीजे चाहिए
ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है – डैम की गुणवत्ता की निष्पक्ष जांच हो, ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो और निर्माण को पारदर्शी बनाया जाए। क्योंकि यह सिर्फ एक निर्माण नहीं — जंगल का जीवन, गांव की उम्मीद और आने वाली पीढ़ियों का सवाल है।

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